जब चाँद की रोशनी मलिन और उबन भरी हो गयी
जब सूरज चार बाँस ऊपर चढ़ गया
तब मैंने सोचा
लावा कहीं भी हो बाहर आयेगा
और जब धरती फटती है तो मुझे पता है
लावा न सही
आग हवा पानी, कुछ न कुछ
बाहर आयेगा और कहेगा-
बन्द करो ये तमाशे
रंगमंच के परदे सभी गिरा दो
रोटियों को चौके के बराबर आकार लेने दो
अपने दिमाग को थोड़ा आराम लेने दो
बन्द करो यह बिसूरना,
बेसुरा रूदन...
इससे पीड़ा ठण्डे कोयले का ढेर बन जाती है
यह तुम्हारे हाथों में धार की जगह
लकड़ी का टुकड़ा पकड़ा देता है
और तुम सबकुछ भूल जाते हो कि
फूल वही अच्छे थे जो टेस्टट्यूब में नहीं बने
आँखें वही अच्छी थीं
जो सबकुछ देखकर समझ लेतीं थीं
और तुम वही अच्छे थे
जहाँ लोगों को पर्याप्त और पूरी रौशनी मिल जाती थी.
तुम्हे क्या लगा धरती ऐसे ही यहाँ तक आ गयी?